Monday, December 26, 2011

ये मसाइले तसव्वुफ़ ये तेरा बयान गालिब

तुम हम बलि समझते जो न बादाख्‍खार होता

ईश्‍वरीय प्रेम की ये अदभुत बातें , कि वेद ईर्ष्‍या करें।

ये मसाइले-तसव्वुफ़.....

सूफियाना बातें। ये मस्‍ती की बातें।

ये तेरा बयान ग़ालिब

और तेरा कहने का यह अनूठा ढंग, कि उपनिषाद शर्मा जाएं।

पहले घर के भेदियो के सर उडाये जायेंगे..

सांप आस्तीनों के न जब तक मारे जायेंगे..
हौंसला कितना भी हो हम जंग हारे जायेंगे..
दुश्मनों की मारकाट तो बाद में होगी..
पहले घर के भेदियो के सर उडाये जायेंगे..

मुल्ला अग्निवेश कल जामा मस्जिद दिल्ली में एक सभा में गया था , कथित बाबरी मस्जिद को दुबारा बनाने की माग हो रही थी, जिसमे अग्निवेश ने भी बोला की आडवानी और मुरली जोशी को तुरंत गिरफ्तार करना चाहिए और दुबारा से कथित बाबरी मस्जिद को बनाना चाहिए ! अग्निवेश ने संघ और बजरंग दल को बैन करने की भी मांग की है ! अग्निवेश ने बोला की ..क्या साबुत है आडवानी के पास की राम का जन्म स्थान यही पर है ! इस मौके पर उसके साथ जामा मस्जिद के इमाम और इलाके के विधायक शोइब इकबाल भी साथ में था ! अब बहुत हो गया, इस अग्निवेश को कुछ करना पड़ेगा ! महंत नित्यान्नद जी ने एक बार इसको धोया था लगता है की अब ये भूल गया है उस धुलाई को ! सब से पहले इसका भगवा वस्त्र उतरना पड़ेगा !
जय श्री राम जय भारत !!

देशद्रोही की कुछ तस्वीरें...




तो क्या बात है

आस्ट्रेलियंस के साथ डा.एल.एस.आचार्य

किताबो के पन्ने पलट के सोचता हूँ
यू पलट जाय मेरी जिंदगी तो क्या बात है
ख्वाबों में जो रोज मिलते है
जो हकीकत में आये तो क्या बात है
कुछ मतलब के लिए ढूढ़ते है सब मुझको
बिन मतलब जो आये तो क्या बात है
कत्ल करके तो सब ले जायेंगे दिल मेरा
कोई बातो से ले जाये तो क्या बात है
जो शरीफों की शराफत में बात न हो
एक शराबी कह जाये तो क्या बात है
अपने रहने तक तो ख़ुशी दूंगा सबको
जो किसी को मौत पे ख़ुशी दे जाये तो क्या बात है

Friday, August 12, 2011

Raksha Bandhan

Raksha Bandhan
Around mid-August, on Shravan Purnima, Hindus all over celebrate Raksha Bandhan. "Raksha" means protection, "bandhan" means bound or binding.
The festival is also known as Balev.

Scriptural Origin

  • The Bhavishya Puran cites a story that the devas once battled with the danavas (demons) for twelve years. However, the devas lost, including the mighty Indra. So they prepared to fight again. On this occasion, Indrani tied a raksha on her consort Indra, after extolling Raksha Bandhan's glory. Indra then attained victory.
  • During the battle of Mahabharat, Queen Kunti tied a raksha on her grandson Abhimanyu to protect him in battle.
  • When the demon King Bali's devotion won over Lord Narayan, he was compelled to leave his abode, Vaikunth, to stay in Bali's kingdom in Sutal. When Lord Narayan failed to return, his distressed consort Lakshmi arrived in Sutal on Shravan Purnima. She accepted Bali as her brother by tying a raksha on him. In return, Bali asked her to wish for a boon. She requested Narayan's return. She grieved that despite having a consort she was experiencing premature widowhood in Narayan's absence. However, the Lord had pledged to eternally protect Bali, by guarding his door. To resolve his dilemma, Brahma and Shiva agreed to guard Bali for four months each, while Vishnu (Narayan) would guard him for the auspicious four months - Chaturmaas - beginning from Ashadh Sud Ekadashi and terminating on Kartik Sud Ekadashi, usually from Mid-July to Mid-November. The festival of Raksha Bandhan commenced when Lakshmiji tied the 'rakhadi' ('rakhee' in Hindi) on Bali Raja. Since Bali Raja offered devotion by sacrificing everything to the Lord, the day is also known as 'Bali-eva' or 'Baleva' for short. Therefore when Brahmin priests perform puja rituals, they chant a famous mantra while tying the 'nada chhadi' (raksha) on a devotee:
    Yena baddho Baliraja daanavendro Mahaabala,
    tena twaamabhi badh naami rakshe maa chala maa chala
    i.e. I tie on you (the devotee) the raksha which was tied on Bali, the King of demons. Therefore O Raksha! Do not ever fail to protect this devotee, do not ever fail.

गुजरात के एक गांव की कमाई है 5 करोड़ रुपए
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गुजरात में राजकोट से 22 किलोमीटर दूर एक गांव की सालाना कमाई है करीब पांच करोड़ रुपए। इस गांव के ज्यादा लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन खेती ही है। कपास और मूंगफली प्रमुख फसलें हैं। गांव में 350 परिवार हैं जिनके कुल सदस्यों की संख्या है करीब 1800।

छोटे-मोटे शहरों की लाइफस्टाइल को मात देने वाले राजसमढियाला गांव की कई ऐसी खासियत हैं जिसके बाद शहर में रहने वाले भी इनके सामने पानी भरते नजर आएं। 2003 में ही इस गांव की सारी सड़कें कंक्रीट की बन गईं। 350 परिवारों के गांव में करीब 30 कारें हैं तो, 400 मोटरसाइकिल।

गांव में अब कोई परिवार गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। इस गांव की गरीबी रेखा भी सरकारी गरीबी रेखा से इतना ऊपर है कि वो अमीर है। सरकारी गरीबी रेखा साल के साढ़े बारह हजार कमाने वालों की है। जबकि, राजकोट के इस गांव में एक लाख से कम कमाने वाला परिवार गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। कुछ समय पहले ही गरीबी रेखा से ऊपर आए गुलाब गिरि अपनी महिंद्रा जीप से खेतों पर जाते हैं। गुलाब गिरि हरिजन हैं। गुलाब गिरि की कमाई खेती से एक लाख से कम हो रही थी तो, उन्हें गांव में ही जनरल स्टोर खोलने में मदद की गई।

गांव के विकास की इतनी मजबूत बुनियाद और उस पर बुलंद इमारत बनाई आजीवन गांव के सरपंच रहे स्वर्गीय देवसिंह ककड़िया को। दस साल पहले गांव के खेतों में पानी की बड़ी दिक्कत थी तो, ककड़िया ने एक आंदोलन सा चलाया और गांव के आसपास 45 छोटे-छोटे चेक डैम बनाए। अब चेक डैम के पानी से आसपास के करीब 25 गांवों के खेत में भी फसल हरी-भरी है।

राजसमढियाला गांव को गुजरात के पहले निर्मल ग्राम का पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के हाथों मिला था। ये पुरस्कार स्वच्छता के लिए मिलता है। गांव के विकास की कहानी इतनी मजबूत है कि तेजी से तरक्की करते शहर फरीदाबाद से आया विशंभर यहीं बस गया है। वो, गांव के एक व्यक्ति का जेसीबी चलाता है। महीने के छे हजार तनख्वाह मिलती है जो, पूरी की पूरी बच जाती है। खाना-पीना भी गांव में ही होता है। लेकिन, अंग्रेजी माध्यम का स्कूल न होने से परिवार को फरीदाबाद ही छोड़ आया है।

इतना ही नहीं है इस गांव के लोग ताला भी नहीं लगाते। लेकिन, इधर कुछ फेरी वालों की हरकतों की वजह से कुछ लोग ताला लगाने की शुरूआत कर रहे हैं। गांव का अपना गेस्ट हाउस है। पंचायत भवन खुला हुआ था। राशन की दुकान में तेल के ड्रम खुले में रखे थे।

गुजरात देश का सबसे ज्यादा तेजी से शहरी होता राज्य है। दरअसल गुजरात के गांव वाले सिर्फ शहरी रहन-सहन ही नहीं अपना रहे। कई साल पहले से उन्होंने इसके लिए अपनी कमाई भी बढ़ाने का काम शुरू कर दिया था। अब राजसमढियाला गांव के नई पीढ़ी के कई लोग राजकोट फैक्ट्री लगा रहे हैं। शहरों में घर खरीद चुके हैं। साफ है गांव-शहर के बीच विकास का संतुलन इससे बेहतर और क्या हो सकता है। लेकिन, गांव में व्यापार, खेती का माहौल ऐसा है कि गांव में ज्यादा पढ़े-लिखे लोग कम ही मिलते हैं। गांव में स्कूल भी दसवीं तक का ही है। ऊंची पढ़ाई के लिए कम ही लोग बाहर जाते हैं क्योंकि, कमाई तुरंत ही शुरू हो जाती है।

Wednesday, April 27, 2011

साभार

लंदन.अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को आतंकवादी संगठन करार दिया है। अमेरिका का मानना है कि आईएसआई, अल-कायदा और तालिबान जितना ही खतरनाक संगठन है। अमेरिका द्वारा ग्वांतानामो बे में अफगानिस्तान और इराक से लाए गए बंदियों में अल-कायदा, हमास, हिजबुल्ला के आतंकियों के साथ आईएसआई के लोग भी शामिल थे।

लंदन के ‘दि गार्जियन’ अखबार ने एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इनमें से किसी भी संगठन से जुड़ा होना आतंकवादी या विद्रोही गतिविधियों का संकेत है।’ अफगानिस्तान में आईएसआई द्वारा तालिबान की मदद करने की जानकारी भी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को मिलती रही है, यह खुलासा भी इस रिपोर्ट में हुआ है।

आतंक संकेतक सूची में भी शामिल : आतंक संकेतक सूची ‘मैट्रिक्स’ में आईएसआई को 36 अन्य आतंकी संगठनों के साथ रखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि यह सूची 2007 की है लेकिन आईएसआई को अभी भी इस सूची से नहीं हटाया गया।

बंदी बनाए गए आतंकियों ने की पुष्टि: ग्वांतानामो बे में 2007 में बंदी बनाकर भेजे गए आतंकी हारुन शिरजाद अल-अफगानी ने अधिकारियों को इस बारे में जानकारी दी है। उसने बताया कि 2006 में एक मीटिंग में उसके साथ पाकिस्तानी सेना और आईएसआई अधिकारियों ने हिस्सा लिया था। उसने यह भी बताया कि 2006 में ही आईएसआई अधिकारी ने एक आतंकी को अफगानिस्तान में हथियार पहुंचाने के लिए दस लाख रुपए दिए थे।

रिश्तों में पड़ सकती है दरार

आईएसआई को तालिबान का मददगार कहने पर पाकिस्तान में रोष की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘यह जानकारी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और आईएसआई के बदहाल रिश्तों को और ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी।’


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संजय कुमार
क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख राजस्थान
Website: www.patheykan.in

Sunday, April 24, 2011

saabhar


सहसा यह विश्वास ही नहीं होता कि आजाद भारत के राजनेता किस दुस्साहस के साथ जनता द्वारा उठाये गये मुद्दों को नकारने में लगे हैं। क्या भ्रष्टाचार के समर्थन या विरोध के बारे में भी कोई दो राय भी हो सकती हैं ? यह साफ साफ समझे जाने की आवश्यकता है कि भारत की जनता के लिये ना तो बाबा रामदेव महत्वपूर्ण हैं और ना ही अन्ना हजारे। उसके लिये महत्व इस बात का है कि वह तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त हो चुकी है और यदि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मुद्दे पर अपने पद को छोड़कर जनता के आव्हान में शामिल होते हैं तो भारत की जनता उन्हैं भी बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की तरह अपनी पलकों पर बिठा लेगी। अब यह तय मनमोहन सिंह को करना है कि उनमें अपनी ईमानदारी को साबित करने का दम है भी या नहीं।

केन्द्र सरकार जिस प्रकार से भ्रष्टाचार को नकार रही है, उसके लिये भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व0 वाई0 एस0 आर0 रेड्डी के पुत्र जगनमोहन रेड्डी ने प्रस्तुत किया है। आगामी 8 मई को कड्डपा लोकसभा क्षेत्र के लिये होने वाले उपचुनावों के लिए जगनमोहन रेड्डी ने निर्वाचन आयोग को अपनी संपत्ति 365 करोड़ रूपये बताई है, जबकि 2009 में जब उन्होंने निर्वाचन आयोग को अपनी संपत्ति मात्र 77 करोड़ रूपये बताई थी। मात्र 23 महिनों में ही उनकी संपत्ति 5 गुना तक बढ़ गई । यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि स्व0 वाई0 एस0 आर0 रेड्डी कांग्रेस सरकार के ना केवल मुख्यमंत्री थे, बल्कि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में से भी एक थे। उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद उनके पुत्र को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नहीं बनाया इसीलिये उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर नइ पार्टी बना ली। इसके विपरीत दूसरी तरफ भारत के संभ्रांत नागरिक हैं जिनके द्वारा दिये गए आयकर से भारत सरकार को अब तक की सबसे बड़ी आय हुई है। हाल ही में एक समाचार ये भी आया है कि भारत सरकार को इस बार आयकर के रूप में 456 लाख करोड़ रूपयों की आमदनी हुई है। प्रश्न यह है कि भारत का रहने वाला नागरिक क्या इसलिये कर चुकाता है कि वह पैसा देश के विकास की बजाय इन नेताओं की जेबों में जाये।

दरअसल, भारत के राजनेताओं ने चुनावों को अपनी सुरक्षा का हथियार बना लिया है। ये लोग पैसे के बल पर ही सत्ता प्राप्त करते हैं, और सत्ता में आने के बाद वही पैसा कमाने के लिए लोकतंत्र की कमियों का फायदा उठाते हैं। प्रश्न यह भी है कि क्या लोकतंत्र का अर्थ जनता की आवाज को अनसुना करना ही होता है, क्या चुनावों का उत्सव इसलिये मनाया जाता है कि देश को जाति, वर्ग , भाषा में बांटकर सत्ता सुख की प्राप्ति की जा सके, और जिन मतदाताओं ने राजनीतिक दलों को सत्ता चलाने का अधिकार दिया है, उनकी आवाज को घोंट दिया जाए। आखिर वो कौनसी शिक्षा है जिसके चलते जो भी व्यक्ति जनप्रतिनिधि निर्वाचित हो जाता है, वह सदन में पहुंचते ही जनता के मुद्दों को गौण समझने लगता है और सत्ता को सर्वोच्च । आखिर कैसे जनप्रतिनिधियों को सदन में पहुँचते ही यह विशिष्ट योग्यता हासिल हो जाती है कि वे जनता की मांगों को शासक की अवज्ञा के रूप में लेने के लिये स्वतंत्र हो जाते हैं और शासन के प्रति अवज्ञा को कुचलने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। इन राजनेताओं ने लोकतंत्र जैसे वरदान को अभिशाप में बदल दिया है, इसी कारण नागरिकों का एक बड़ा वर्ग मतदान के प्रति अरूचि व्यक्त करने लगा है।

पहले बाबा रामदेव और अब अन्ना हजारे को भ्रष्ट साबित करने में अपनी उर्जा को खपा रहे राजनीतिक दलों के राजनेता क्या यह साबित करना चाहते हैं कि जो भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलेगा, वे उस व्यक्ति को भी भ्रष्टाचार के दल दल में घसीट लेने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे । इसलिये जो भी व्यक्ति अपनी ईमानदारी को बचाकर रखना चाहते हैं वे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शब्द भी न बोलें। क्या यह माना जाए कि यह जनता को शासक वर्ग से मिल रही धमकी है ?

यह स्पष्ट रूप से समझे जाने की जरूरत है कि जो लोग अन्ना हजारे के समर्थन में सड़कों पर उतरे थे, वे केवल प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में शामिल करने की मांग पर नहीं आये थे। वे चाहते थे कि अन्ना हजारे भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों के खिलाफ होने वाले लोकतान्त्रिक आंदोलन के ठीक उसी प्रकार वाहक बनें जैसा कि जयप्रकाश नारायण ने 1975 में इंदिरा गांधी के अलोकतांत्रिक व्यवहार व सरकार के विरूद्ध किया था। लेकिन सत्ता में बैठे लोग अपने प्रभाव और पैसे के कारण भारत के नागरिकों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।

अच्छा तो यह होता कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले राजनेता भ्रष्टाचार पर देश भर में चल रही बहस को देखते हुए इस मुद्दे पर संसद में बात करते, और जनता को यह विश्वास दिलाते कि भारत के राजनीतिक दल भी भ्रष्टाचार को जड़मूल से समाप्त करने के लिए कृतसंकल्पित हैं। प्रश्न यह है कि क्यों नहीं इस विषय पर सभी राजनीतिक दल अपने मतदाताओं को विश्वास दिलाने के लिये आमराय बनाते कि वे सब उस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए संकल्पित हैं, जो भ्रष्टाचार की जननि है।

क्या वे इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि भारत के नागरिक अवज्ञा पर उतर जायें और सरकारों को सभी प्रकार के कर देने से मना कर दें। क्यों नहीं भारत के तमाम राजनेता भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने का साहस दिखाते? या केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार पर एक श्वेत पत्र जारी करती जो भारत की जनता को यह बता सके कि सरकार की नजर में देश में भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है ? या जनता को ही यह अधिकार देते कि वह अपने द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि को वापस भी बुला सकती है।

स्व0 प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जब नए नए प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने यह कहने का साहस दिखाया था कि केन्द्र सरकार से चला एक रूपया गांव तक आते आते 15 पैसा रह जाता है, ये बात अलग है कि बाद में उन्हीं राजीव गांधी पर बोफोर्स तोप के सौदे में दलाली खाने का आरोप लगा। उसी तरह का साहस स्व0 राजीव की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में चलने वाली मनमोहन सिंह की सरकार क्यों नहीं कर पा रही है? प्रश्न यह भी महत्वपूर्ण है कि श्रीमती सोनिया गांधी की ऐसी कौनसी दुविधा है, जो उन्हैं अपने स्व0 पति की व्यथा को दूर करने से रोक रही है। क्या यह माना जाए कि उनके मार्गदर्शन में चलने वाली सरकारों में हो रहे भ्रष्टाचार को उनकी स्वीकृति प्राप्त है?

जरूरत इस बात की है कि विभिन्न राज्यों में सत्ता का सुख भोग रहे और भोग चुके राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के बारे में अपने मत को स्पष्ट करें, इस मुद्दे उनकी टालमटोल की नीति का अर्थ यह लगाया जाएगा कि वे भ्रष्टाचार का समर्थन करते हैं और आज के हालात में भ्रष्टाचार को अपरिहांर्य मानते हैं। हमें यह याद रखना होगा कि इस देश ने सदियों से अपने उपर हुए आक्रमणों को झेलकर भी अपने आप को बचाए रखा है और जब आक्रमण घर के भीतर से ही हो रहा हो तो जनप्रतिक्रिया कैसी होगी इसके लिए राजनेता भारत का इतिहास एक बार फिर पढ़ लें। अब जवाब राजनेताओं को देना है, देश की जनता उनके निर्णय का इंतजार कर रही है।

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

(लेखक सेंटर फार मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट के निदेशक हैं

Wednesday, April 20, 2011

Devendra Dutta Mishra
............मैं कविता के दीप जलाता हूँ।
सूरज ढल रहा है,
सितारे दूर बैठे हैं।
थोडी सी रोशनी हो,
इसलिए मैं कविता के दीप जलाता हूँ।
इसलिए मैं कविता…….

दिशाएँ मौन बैठी हैं,
हवाएँ शान्त स्थिर है।
घुटन कुछ कम हो,
इसलिए मैं शब्द-चँवर झेलता हूँ।
इसलिए मैं कविता………

दुपहरी तेज है तपिस है,
नहीं किसी वृक्ष का छाँव भी।
भावना का पगा सिर पर हो,
इसलिए गीत मुकुट गढता हूँ।
इसलिए मैं कविता…………

थके है पाँव मन थका है,
पथ मे विश्राम-स्थल भी नही।
पुश्त को आराम थोडा मिल सके,
इसलिए संगीत मरहम मलता हूँ।
इसलिए मैं कविता………

बहुत बिखराव है मन में,
दरकते हुए रिश्ते हैं हृदय मे।
दिल को दिल से मिला पाऊँ,
इसलिए प्रेमधागे जोडता हूँ।
इसलिए मैं कविता………..

आवेश मे हैं लोग भृकुटि तनी है।
कोई किसी की सुनता नही।
दिलो के बीच संवाद फिर से हो सके
इसलिए प्रेमाक्षरो के पुल बनाता हूँ।
इसलिए मैं प्रेमगीत लिखता हूँ

ये वही अन्ना हजारे है |

saabhaar
Arvind Yogi
मेरा भारत प्यारा भारत

अन्ना हजारे कौन है ?
१ - ये वही अन्ना हजारे है जिन्होंने ठाकरे साहब के उर में सुर मिलाया यू पी और बिहारी मुंबई को बर्बाद कर रहे है !
२ - ये वही अन्ना हजारे है जिन्होंने वीडियो लाइव टेलीकास्ट लोकपाल बिल का होने का विरोध करते है !
३ - ये वही अन्ना जी जिन्होंने एक सपना देखा है एक महान नेता बनने का
बहुत सी ऐसी बाते है जिन्हें बताते हुए शर्म आती है कि भारत इए लोगो को आज भी अपना उद्धारक मानता है !
अन्ना हजारे को एक बहरूपिया चोर गिरगिट कुत्सित मनोविकारी विस्वह्घती और न जाने कितने ही शब्द कम पड़ जायेंगे
आइये सोचिये समझिये कुछ कीजिये नहीं तो ऐसे चोर हमारे भारत को बेच देंगे !
गर मुझे अन्ना को चोर कहने से कोई भी सजा मिली तो स्वागत है कि एक गंदगी को अ करने के लिए मेरा जीवन समर्पित हो जायेगा क्योकि ये जीवन तो मेरे मातृभूमि का ऋणी है देश के इतिहाश में ऐसे असामाजिक विस्वाहघती चोर नेताओं को चप्पलों कि माला पहननी चाहिए
मेरे प्रिय एवम आदरनीय श्री प्रवीण आर्य जी कुछ तो कीजिये इस चोर का नहीं तो देश का इतिहास आपसे हमेसा पूछता रहेगा कि आपकी कलम कहाँ सो गई थी आप खुद को माफ़ नहीं कर सकेंगे ! जय भारत जय भारतीय

श्री रामदेव जी क्यों नहीं किरण बेदी क्यों नहीं ?

saabhaar
Arvind Yogi
मै कौन हूँ ? क्यों हूँ ?
पहली बात कि मै भी एक आम भारतीय नागरिक हूँ कलम का एक छोटा सा उपासक हूँ !
१- अन्ना हजारे जी से मेरा कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं है हाँ लेकिन उनके जैसा कार्य गर कोई भी भारतीय करता है तो जरुर बोलूँगा भले ही कोई मुझे पागल कहे तो कहता रहे हाँ अर्क सिर्फ इतना पड़ेगा कि लोग कितने सवेंदनशील है ये जरुर सामने आएगा !
आप खुद सोचिये
१ - बाबा रामदेव या किरण बेदी जी के साथ आने से पहले अन्ना हजारे को कौन जनता था क्या आप जानते थे ?
२-लोकपाल बिल विधेयक लाने का प्रस्ताव बाबा रामदेव जी की समिति का उद्देश्य रहा है जिसमे अन्ना जी शामिल किये गए फिर समिति में वंशवाद क्यों हुआ कि इस समिति में राजनीती से सम्बन्ध रखने वाले लोग ही रखे गए है श्री रामदेव जी क्यों नहीं किरण बेदी क्यों नहीं ?
३- विधेयक पास होने का लाइव प्रसारण होने का विरोध अन्ना जी ने क्यों किया वो भी जब कांग्रेस भी यही बात कह रहा है आखिर जनता का बिल है तो फिर जनता से क्यों छिपाया जायेगा ?
४- इस समय इस प्रकरण से क्या बाबा रामदेव जी पूरी तरह से जुड़े हुए है या फिर उनको क्या कोई व्यक्तिगत स्वार्थ हो सकता है ! जी नहीं बाबा रामदेव जी को इस गंदगी का आभास हो गया है इसलिए वो दूर हो गए है इस गंदगी से हाँ अन्ना हजारे को स्वार्थ है ये साफ साफ देखा जा सकता है जो कि बाल ठाकरे अपनी राजनीती चमका सकते है कांग्रेस अपना बचाव कर सकता है ?
५- हमारे भारत का इतिहास रहा है जब भी कोई महान संत या राजनीती से अलग व्यक्ति राजनीती के खिलाफ खड़ा हुआ है उसके पीछे कूटनीति कि बिसात बीचा दी गयी है ! और यही हुआ है हमारे बाबा रामदेव जी के साथ !
६ - आज डाक्टर कुमार विश्वाश जी जैसे लोग क्यों दूर हो गए है इस पुरे प्रकरण से ?
७- अग्निवेश के बारे में कभी सोचा है आपने कि इसका इतिहास क्या रहा है ?
८- क्या सर्कार के पास जवाब था अपने सारे घोटालो से ध्यान हटाने का ये तो दुर्भाग्य है कि आवाज उठी जरुर लेकिन ना वक़्त अहि था और नहीं चुना गया व्यक्ति सही था अन्ना हजारे ने ना केवल बाबा रामदेव कि समिति को धोखा दिया है बल्कि सभी को धोखा दिया है कितनी हदों तक सरकार सफल हुई है अपने किये बुरे कार्यो को उधारने में ?
९- राजनीती कि पार्टी कोई भी हो सभी ने अपनी रोटी सेंकी है भोली जनता को तवे कि तरह तपा कर क्या ये सच नहीं है आज कोई भजी पार्टी विस्वाश के काबिल नहीं है ?
१०- कांग्रेस ने बाबा रामदेव जी के प्रयासों जानते हुए और इसकी गंभीरता को जानते हुए एक कूटनीतिक पारी खेली जिसमे वो सफल रही ! भोली जनता का ध्यान हटाना मात्र उनका उद्देश्य था सो उन्होंने बखूबी कर लिया ! अब विधेयक पास होना तो दूर कि बात है धीरे धीरे वक़्त के साथ होता रहेगा ! कांग्रेस कि सोची समझी राजनीती रही है अन्ना हजारे जैसे ऐसे व्यक्ति को बाबा रामदेव जी के पीछे लगाने की जो आसानी से सफल हुई ?

हो सकता है मै अपने विचारो से गलत हो जाऊ मुझे परवाह नहीं परन्तु भारतीय जनता के साथ गलत नहीं होना चाहिए भले ही अन्ना हजारे कुछ करे लेकिन गर वो समझते है कि जनता भेद है तो वो भूल जाये चलिए ९० % लोग नहीं मानेंगे सच्चाई को लेकिन जब आने वाले कल में उन्हें पता चलेगा इस पूरी राजनितिक प्रपंच के बारे में तो खुद को मजबूर और लाचार पाएंगे ! यह कड़वा सच है कि अन्ना हजारे राजनीती के मोहरे के सिवाय कुछ भी नहीं है ! गर मेरे विचारो से मैंने किसी को कस्ट पहुँचाया तो मुझे माफ़ कीजिये लेकिन आने वाले भारत का भविष्य ये राजनेता बर्बाद करके ही रहेंगे अगर हम इनके दांवपेंच से ना बच सके तो !
मेरा कलम ना किसी का गुलाम है और नहीं किसी राजनीती से सम्बन्ध रखता है रही बात भ्रस्ताचार के खिलाफ बोलने कि तो भ्रस्ताचार गर अपने सही रूप में रहे तो हर कोई समझ; सकता है लेकिन यदि यही आचार का रूप धारण कर ले तो भला कहाँ कोई जल्दी समझ सकता है ! ए मेरे भारत वासियों उठो जागो और जवाब दो आज फिर तुम्हारे बीच एक संत बाबा रामदेव जैसे लोगो को भी ए राजनेता अपनी कूटनीति से पराजित करना चाहते है !
आज हमारा दुश्मन कोई और नहीं हमरे घर में बैठा हमारा शाशक ही है जो हमें अपने हिसाब से चलाना चाहता है और हम उसके दांवपेंच में फंसते जा रहे है!
जागो भारत जागो जय भारत जय भारतीय ! अरविन्द योगी ९८७३२४८९८७

Friday, April 15, 2011

साभार

" दहेज़
निश्चय ही "देह व्यापार " है और दहेज़ ले
कर शादी करनेवाले दूल्हे / पति
"पुरुष वैश्या". लेकिन ताली दोनों हाथ
से बज रही है. जब तक सपनो के
राजकुमार कार पर आएंगे पैदल या
साइकिल पर नहीं तब तक दहेज़
विनिमय होगा ही
. जबतक लड़कीवाले लड़के के बाप के
बंगले कार पर नज़र रखेंगे तब तक
लड़केवाले
भी लड़कीवालों के धन पर नज़र डालेगे ही.
लडकीयाँ दहेज़ से लड़ना ही नहीं चाह
रहीं. सुविधा की चाह उन्हें संघर्ष की
राह से बहुत दूर ले आई है."-- राजीव चतुर्वेदी

साभार

" एक सूरज जो कल ही डूबा था तुम्हारे सामने
आज फिर से रोशनी के साथ आया है
अदालत वख्त की हो या विधानों की बताओ तुम कहोगे क्या ?
फलक पर दर्ज होते इस उजाले पर फेंक लो जितनी भी स्याही
तुहारे दिल की तारीकी की दहशत देख कर
तुम ही डूब जाना अपने चुल्लू भर गुनाहों में

एक सूरज जो कल ही डूबा था तुम्हारे सामने

आज फिर से रोशनी के साथ आया है.
" ---- राजीव चतुर्वेदी

साभार

Arvind Yogi posted in luckhnawi.
दो घूँट आंसू का  तन्हाई के साये में  ख़ामोशी कि नदी बहती है  दिल उसकी यादों में सूखे पत्तो पर  जो विरह व्यथा लिखती है खामोश चांदनी  रात में उसकी यादें  शबनम  बन आँखों कि मुडेरो से टपकती है  और एक नदी बह पड़ती है  उसकी यादों कि कोख से  जब हवाएं नदी में  नहाने के लिए आती है  शशि को अर्घ देती स्पर्श करती  तो एक घडी नदी के किनारे  वो पत्थर पर बैठ जाती हैं  उस समय नदी कि छाती से  चाँद कि किरणे कुछ कहती है  तब उसकी यादों में  यह खामोश नदी बहती है  आसमान में चमकते  प्यारे तारे   इस  नदी में खेलते है  बादल भी तैरते है सितारे भी उतरते है   पंक्षी भी पानी पीते है  और शशि का योगी अरविन्द  अपना कमंडल भरने को जब  नदी के किनारे आता है  दो घूँट आंसू का  आँखों में रमाता है  और उसकी यादो में  ख़ामोशी कि नदी में  कुछ पल को डूब जाता है  जब बाहर निकल कर आता है तो आँखों के सामने  वही ख़ामोशी की नदी बहती है उसकी यादों में जब पर्वत और घाटियाँ  गुजरे प्यार की गाथा गुनगुनाते है  तो खामोश यादो का दिल  इश्क बन धड़क जाता है  और योगी के  होंठो पर सिसकती    गुजरे लम्हों की गाथा  खामोश नदी में  प्रेम का तूफ़ान लता है उफान लाता है  योगी कह उठता है !  तुने ही हंसकर ज़िन्दगी की नदी पर  ख्वाबों का पुल बनाया था  और मुझे लाकर मझधार पर  दूसरा किनारा दिखाया था  और खुद को नदी की आगोश में समाया था  तब से उसकी याद में  यह ख़ामोशी  की नदी बहती है और योगी की छाती में  गुजरा इश्क धडकता है  विरह रगों में बसता है  तब नदी की ख़ामोशी में डूबी  उसकी शाशि का भी दिल धडकता है  फिर फिर उसकी यादो में ख़ामोशी की नदी बहती है  जो यादो के शाए में  कभी बहती कभी सूखती है  पर वो इतना जानती है  वह भी योगी के इश्क में  खामोश नदी सी बहती है  खामोश होकर भी  गुजरे वक़्त की गाथा कहती है  योगी शशि  की आगोश में  हर रोज नहाता  है  और दो घूट आंशू का  आँखों में रमाता है  और उसकी यादो में  ख़ामोशी की नदी में  हमेशा को डूब जाता है !  यह कविता क्यों ? दो घूट लेकर आंशू का जीवन के दो पहलू है ख़ुशी से मुस्कराओ या गम से मुस्कराओ मुस्कराना तो ज़िन्दगी है जो मुस्कान को नहीं जानता वो अपनी  या ज़िन्दगी की पहचान को नहीं जानता   अरविन्द योगी * यह कविता सभी प्रेमियों को सहृदय समर्पित   १४/०४/२०११
Arvind Yogi14 अप्रैल 23:54
दो घूँट आंसू का

तन्हाई के साये में
ख़ामोशी कि नदी बहती है
दिल उसकी यादों में सूखे पत्तो पर
जो विरह व्यथा लिखती है
खामोश चांदनी रात में
उसकी यादें शबनम बन
आँखों कि मुडेरो से टपकती है
और एक नदी बह पड़ती है
उसकी यादों कि कोख से
जब हवाएं नदी में नहाने के लिए आती है
शशि को अर्घ देती स्पर्श करती
तो एक घडी नदी के किनारे
वो पत्थर पर बैठ जाती हैं
उस समय नदी कि छाती से
चाँद कि किरणे कुछ कहती है
तब उसकी यादों में
यह खामोश नदी बहती है
आसमान में चमकते प्यारे तारे
इस नदी में खेलते है
बादल भी तैरते है
सितारे भी उतरते है
पंक्षी भी पानी पीते है
और शशि का योगी अरविन्द
अपना कमंडल भरने को जब
नदी के किनारे आता है
दो घूँट आंसू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी कि नदी में
कुछ पल को डूब जाता है
जब बाहर निकल कर आता है
तो आँखों के सामने
वही ख़ामोशी की नदी बहती है
उसकी यादों में जब पर्वत और घाटियाँ
गुजरे प्यार की गाथा गुनगुनाते है
तो खामोश यादो का दिल
इश्क बन धड़क जाता है
और योगी के होंठो पर सिसकती
गुजरे लम्हों की गाथा
खामोश नदी में
प्रेम का तूफ़ान लता है उफान लाता है
योगी कह उठता है !
तुने ही हंसकर ज़िन्दगी की नदी पर
ख्वाबों का पुल बनाया था
और मुझे लाकर मझधार पर
दूसरा किनारा दिखाया था
और खुद को नदी की आगोश में समाया था
तब से उसकी याद में
यह ख़ामोशी की नदी बहती है
और योगी की छाती में
गुजरा इश्क धडकता है
विरह रगों में बसता है
तब नदी की ख़ामोशी में डूबी
उसकी शाशि का भी दिल धडकता है
फिर फिर उसकी यादो में ख़ामोशी की नदी बहती है
जो यादो के शाए में
कभी बहती कभी सूखती है
पर वो इतना जानती है
वह भी योगी के इश्क में
खामोश नदी सी बहती है
खामोश होकर भी
गुजरे वक़्त की गाथा कहती है
योगी शशि की आगोश में
हर रोज नहाता है
और दो घूट आंशू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी की नदी में
हमेशा को डूब जाता है !

यह कविता क्यों ? दो घूट लेकर आंशू का जीवन के दो पहलू है ख़ुशी से मुस्कराओ या गम से मुस्कराओ मुस्कराना तो ज़िन्दगी है जो मुस्कान को नहीं जानता वो अपनी या ज़िन्दगी की पहचान को नहीं जानता अरविन्द योगी * यह कविता सभी प्रेमियों को सहृदय समर्पित १४/०४/२०११

साभार

रामदेव को ग़लतफ़हमी, समिति नहीं बदलेगी:
हज़ारे

लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर अन्ना हज़ारे के समर्थन में आने वाले योग गुरु बाबा
रामदेव ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि विधेयक के लिए गठित समिति में शांति भूषण
के होने पर उन्हें व्यक्तिगत तौर पर आपत्ति नहीं है. उनका कहना था कि लोगों ने इस
पर सवाल उठाए थे और उन्होंने लोगों की बात आगे पहुंचाई है.

विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए नागरिक समाज की ओर से पांच सदस्य हैं जिनमें
पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण भी हैं.

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अन्ना हज़ारे ने कहा है कि इस समय मकसद लोकपाल
विधेयक का मसौदा तैयार करना है और समिति में कौन है कौन नहीं इस पर बहस नहीं होनी
चाहिए. हज़ारे ने कहा कि वे इस बारे में बाबा रामदेव से बात करेंगे कि देश हित में
वे इस सवाल को न उठाएँ.

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे ने लोकपाल विधेयक को संसद के दोनों सदनों में
पारित कराने के लिए 15 अगस्त की समयसीमा रखी है.


saabhar

Murari Sharan Shukla posted in luckhnawi.
देखिये शांति भूषण की असलियत ! पढ़िए इस समाचार को ध्यान से आप सभी लोग ! स्वामी अग्निवेश की चालुगिरी के कारण अन्ना खा गए धोखा ! कौंग्रेस के इशारे पर अग्निवेश अन्ना के धरने में शामिल हुआ ! और अन्ना हजारे को प्रभावित करके अपनी मर्जी का फैसला भी करवा लिया ! इससे पता चलता है कि इस देश में देश का काम करने वाले देशभक्तों को कितनी सावधानी बरतने कि आवश्यकता है ? आप कभी भी भावनाओं के आधार पर हाइजैक हो सकते हैं ! लोग आपको आपके उद्येश्य से भटकने का पूरा हुनर जानते हैं ! इन देश द्रोहियों ने देश पर कब्ज़ा बनाये रखने का सारा हुनर सिख लिया है ! मेरे प्यारे देशवासियों अब आप लोग भी ऐसी सभी बातों को समझने का हुनर सीखो यथासिघ्र ! अभी हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी है ! और इस युद्ध यात्रा में ऐसे न जाने कितने भेड़ के खाल में भेड़िये मिलेंगे ! हमें सबको पहचानना होगा और इनके लाशों पर पग धर कर आगे बढ़ना होगा मेरे मित्रों ! अगर हम पहचानने में इसी तरह भूल करते रहे तो हमारा सारा मेहनत बेकार चला जायेगा ! और आन्दोलन के अंत में हम ठगे से रह जायेंगे ! भारत माता के बहादुर पुत्रों को केवल बहादुर होना ही पर्याप्त नहीं है हमें नीर-क्षीर विवेक भी सीखना पड़ेगा !
Murari Sharan Shukla15 अप्रैल 01:09
देखिये शांति भूषण की असलियत ! पढ़िए इस समाचार को ध्यान से आप सभी लोग ! स्वामी अग्निवेश की चालुगिरी के कारण अन्ना खा गए धोखा ! कौंग्रेस के इशारे पर अग्निवेश अन्ना के धरने में शामिल हुआ ! और अन्ना हजारे को प्रभावित करके अपनी मर्जी का फैसला भी करवा लिया ! इससे पता चलता है कि इस देश में देश का काम करने वाले देशभक्तों को कितनी सावधानी बरतने कि आवश्यकता है ? आप कभी भी भावनाओं के आधार पर हाइजैक हो सकते हैं ! लोग आपको आपके उद्येश्य से भटकने का पूरा हुनर जानते हैं ! इन देश द्रोहियों ने देश पर कब्ज़ा बनाये रखने का सारा हुनर सिख लिया है ! मेरे प्यारे देशवासियों अब आप लोग भी ऐसी सभी बातों को समझने का हुनर सीखो यथासिघ्र ! अभी हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी है ! और इस युद्ध यात्रा में ऐसे न जाने कितने भेड़ के खाल में भेड़िये मिलेंगे ! हमें सबको पहचानना होगा और इनके लाशों पर पग धर कर आगे बढ़ना होगा मेरे मित्रों ! अगर हम पहचानने में इसी तरह भूल करते रहे तो हमारा सारा मेहनत बेकार चला जायेगा ! और आन्दोलन के अंत में हम ठगे से रह जायेंगे ! भारत माता के बहादुर पुत्रों को केवल बहादुर होना ही पर्याप्त नहीं है हमें नीर-क्षीर विवेक भी सीखना पड़ेगा !

Tuesday, April 12, 2011

आज भी प्रासंगिक है ये उद्वोधन !

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ---- रामधारी सिंह 'दिनकर' ( 1908-1974)
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता ? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।

जनता? हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"

मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता; गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।

सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

Monday, April 11, 2011

Kuchh jaankariyan ! ! ! !

क्या आप जानते हैं |
-----

A huge underground river runs

underneath the Nile, with six times

more water than the river above.

The USA uses 29% of the world's

petrol and 33% of the world's electricity.

Wearing headphones for just an

hour will increase the bacteria

in your ear By 700 times.

The animal responsible for the

most human deaths world-wide

is the mosquito.

Right handed people live, on average, nine years longer than left-handed people.

We exercise at least 30 muscles

when we smile.

Our nose is our personal air-conditioning

system: it warms cold air, cools

hot air and filters impurities.

People who ride on roller coasters

have a higher chance of having

a blood clot in the brain.

People with blue eyes see better in dark.

Money isn?t made out of paper;

it is made out of cotton.

A tiny amount of liquor on a scorpion

will make it go mad instantly

and sting itself to death.

Chewing gum while peeling

onions will keep you from crying.

Our brain is more complex than

the most powerful computer and

has over 100 billion nerve cells.

When a person dies, hearing

is usually the first sense to go.

There is a great mushroom in

Oregon that is 2,400 years old.

It Covers 3.4 square miles of

land and is still growing.

German Shepherds bite humans

more than any other breed of dog.

The pupil of the eye expands as

much as 45 percent when a

person looks at something pleasing

Men's shirts have the buttons

on the right, but women's

shirts have the buttons on the left.

The reason honey is so easy to

digest is that it's already been

digested by a bee.

It cost 7 million dollars to build

the Titanic and 200 million to

make a film about it.

The sound you hear when you

crack your knuckles is actually

he sound of nitrogen gas bubbles

bursting.

The only part of the body that

has no blood supply is the

cornea in the eye. It takes in

oxygen directly from the air.

Friday, April 8, 2011

इस पेड़ की करामात सुन दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे आप!

Source: Agency | Last Updated 10:36(08/04/11)

लखनऊ। यूपी के शाहजहांपुर में एक गांव है देवरिया झाला। इस गांव के पास फैले जंगलों में एक ऐसा पेड़ है, जिसकी करामात सुन आप दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाएंगे। गांव के वासिंदों के मुताबिक यह पेड़ किसी ज्योतिषी की भांति भविष्य के रहस्यों से पर्दा उठाता है।


इस पेड़ की सबसे बड़ी खासियत है कि इस पर लिखा गया नाम उस व्यक्ति के मरने से ठीक पहले मिट जाता है। यहां गांव के ही नहीं देश के अन्य क्षेत्रों के लोग भी इस पेड़ के चमत्कार को सुन इसे देखने के लिए आते हैं।


लगभग पांच सौ साल पुराने इस पेड़ का नामकण भी किया गया है। गांव के लोग इस पेड़ को देवता की भांती पूजते है। गांव के रहने वाले रामसमुझ के मुताबिक, उनके जन्म से पहले से ही इस पेड़ का अस्तित्व कायम है। उनके गांव में यह प्रथा है कि लड़के के जन्म के समय में ही उसका नाम पेड़ पर लिख दिया जाता है। फिर मरने के बाद जब नाम जांचा जाता है, तो वह मिटा मिलता है।


हम आधुनिक वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं, ऐसे में इस तरह के वाकयों पर सहज विश्वास नहीं किया जा सकता। याद कीजिए जगदीश चंद्र बोस को अविष्कार को। उन्होंने बताया था कि पेड़-पौधों में भी जान होती। वो सुख-दुख अनुभव करते हैं। अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। और इंसानों के अलावा अन्य जीवों को प्रकृत ने सिक्स सेंस भी दिया है। ऐसे में इस पर विचार किया जा सकता है।


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संजय कुमार