Friday, April 15, 2011

साभार

" दहेज़
निश्चय ही "देह व्यापार " है और दहेज़ ले
कर शादी करनेवाले दूल्हे / पति
"पुरुष वैश्या". लेकिन ताली दोनों हाथ
से बज रही है. जब तक सपनो के
राजकुमार कार पर आएंगे पैदल या
साइकिल पर नहीं तब तक दहेज़
विनिमय होगा ही
. जबतक लड़कीवाले लड़के के बाप के
बंगले कार पर नज़र रखेंगे तब तक
लड़केवाले
भी लड़कीवालों के धन पर नज़र डालेगे ही.
लडकीयाँ दहेज़ से लड़ना ही नहीं चाह
रहीं. सुविधा की चाह उन्हें संघर्ष की
राह से बहुत दूर ले आई है."-- राजीव चतुर्वेदी

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