Friday, April 15, 2011

साभार

Arvind Yogi posted in luckhnawi.
दो घूँट आंसू का  तन्हाई के साये में  ख़ामोशी कि नदी बहती है  दिल उसकी यादों में सूखे पत्तो पर  जो विरह व्यथा लिखती है खामोश चांदनी  रात में उसकी यादें  शबनम  बन आँखों कि मुडेरो से टपकती है  और एक नदी बह पड़ती है  उसकी यादों कि कोख से  जब हवाएं नदी में  नहाने के लिए आती है  शशि को अर्घ देती स्पर्श करती  तो एक घडी नदी के किनारे  वो पत्थर पर बैठ जाती हैं  उस समय नदी कि छाती से  चाँद कि किरणे कुछ कहती है  तब उसकी यादों में  यह खामोश नदी बहती है  आसमान में चमकते  प्यारे तारे   इस  नदी में खेलते है  बादल भी तैरते है सितारे भी उतरते है   पंक्षी भी पानी पीते है  और शशि का योगी अरविन्द  अपना कमंडल भरने को जब  नदी के किनारे आता है  दो घूँट आंसू का  आँखों में रमाता है  और उसकी यादो में  ख़ामोशी कि नदी में  कुछ पल को डूब जाता है  जब बाहर निकल कर आता है तो आँखों के सामने  वही ख़ामोशी की नदी बहती है उसकी यादों में जब पर्वत और घाटियाँ  गुजरे प्यार की गाथा गुनगुनाते है  तो खामोश यादो का दिल  इश्क बन धड़क जाता है  और योगी के  होंठो पर सिसकती    गुजरे लम्हों की गाथा  खामोश नदी में  प्रेम का तूफ़ान लता है उफान लाता है  योगी कह उठता है !  तुने ही हंसकर ज़िन्दगी की नदी पर  ख्वाबों का पुल बनाया था  और मुझे लाकर मझधार पर  दूसरा किनारा दिखाया था  और खुद को नदी की आगोश में समाया था  तब से उसकी याद में  यह ख़ामोशी  की नदी बहती है और योगी की छाती में  गुजरा इश्क धडकता है  विरह रगों में बसता है  तब नदी की ख़ामोशी में डूबी  उसकी शाशि का भी दिल धडकता है  फिर फिर उसकी यादो में ख़ामोशी की नदी बहती है  जो यादो के शाए में  कभी बहती कभी सूखती है  पर वो इतना जानती है  वह भी योगी के इश्क में  खामोश नदी सी बहती है  खामोश होकर भी  गुजरे वक़्त की गाथा कहती है  योगी शशि  की आगोश में  हर रोज नहाता  है  और दो घूट आंशू का  आँखों में रमाता है  और उसकी यादो में  ख़ामोशी की नदी में  हमेशा को डूब जाता है !  यह कविता क्यों ? दो घूट लेकर आंशू का जीवन के दो पहलू है ख़ुशी से मुस्कराओ या गम से मुस्कराओ मुस्कराना तो ज़िन्दगी है जो मुस्कान को नहीं जानता वो अपनी  या ज़िन्दगी की पहचान को नहीं जानता   अरविन्द योगी * यह कविता सभी प्रेमियों को सहृदय समर्पित   १४/०४/२०११
Arvind Yogi14 अप्रैल 23:54
दो घूँट आंसू का

तन्हाई के साये में
ख़ामोशी कि नदी बहती है
दिल उसकी यादों में सूखे पत्तो पर
जो विरह व्यथा लिखती है
खामोश चांदनी रात में
उसकी यादें शबनम बन
आँखों कि मुडेरो से टपकती है
और एक नदी बह पड़ती है
उसकी यादों कि कोख से
जब हवाएं नदी में नहाने के लिए आती है
शशि को अर्घ देती स्पर्श करती
तो एक घडी नदी के किनारे
वो पत्थर पर बैठ जाती हैं
उस समय नदी कि छाती से
चाँद कि किरणे कुछ कहती है
तब उसकी यादों में
यह खामोश नदी बहती है
आसमान में चमकते प्यारे तारे
इस नदी में खेलते है
बादल भी तैरते है
सितारे भी उतरते है
पंक्षी भी पानी पीते है
और शशि का योगी अरविन्द
अपना कमंडल भरने को जब
नदी के किनारे आता है
दो घूँट आंसू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी कि नदी में
कुछ पल को डूब जाता है
जब बाहर निकल कर आता है
तो आँखों के सामने
वही ख़ामोशी की नदी बहती है
उसकी यादों में जब पर्वत और घाटियाँ
गुजरे प्यार की गाथा गुनगुनाते है
तो खामोश यादो का दिल
इश्क बन धड़क जाता है
और योगी के होंठो पर सिसकती
गुजरे लम्हों की गाथा
खामोश नदी में
प्रेम का तूफ़ान लता है उफान लाता है
योगी कह उठता है !
तुने ही हंसकर ज़िन्दगी की नदी पर
ख्वाबों का पुल बनाया था
और मुझे लाकर मझधार पर
दूसरा किनारा दिखाया था
और खुद को नदी की आगोश में समाया था
तब से उसकी याद में
यह ख़ामोशी की नदी बहती है
और योगी की छाती में
गुजरा इश्क धडकता है
विरह रगों में बसता है
तब नदी की ख़ामोशी में डूबी
उसकी शाशि का भी दिल धडकता है
फिर फिर उसकी यादो में ख़ामोशी की नदी बहती है
जो यादो के शाए में
कभी बहती कभी सूखती है
पर वो इतना जानती है
वह भी योगी के इश्क में
खामोश नदी सी बहती है
खामोश होकर भी
गुजरे वक़्त की गाथा कहती है
योगी शशि की आगोश में
हर रोज नहाता है
और दो घूट आंशू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी की नदी में
हमेशा को डूब जाता है !

यह कविता क्यों ? दो घूट लेकर आंशू का जीवन के दो पहलू है ख़ुशी से मुस्कराओ या गम से मुस्कराओ मुस्कराना तो ज़िन्दगी है जो मुस्कान को नहीं जानता वो अपनी या ज़िन्दगी की पहचान को नहीं जानता अरविन्द योगी * यह कविता सभी प्रेमियों को सहृदय समर्पित १४/०४/२०११

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