Friday, April 8, 2011

" सभ्यता के इस सफ़र में
केवड़े के फूल और फावड़े की धूल से गुजरते गाँव के इन रास्तों से
पूछ लो कुछ प्रश्न तुम भी

यह सच है कि सुनामी तालाब में नहीं आती
ये सच है बल्ब शर्माते हैं सूरज से अभी भी
ये सच है आग मिट्टी में दबी है
ये सच है जुलूसों में उसूलो का जनाजा जा रहा है
ये सच है मंदिरों में बलि चढ़ाई जा रही है
ये सच है इस खुदा का प्यार कम पर खौफ ज्यादा है
ये सच है सूर के दर्शन में सुदामा हाशिये पर है
ये सच है आदमी ही आदमी के खून का प्यासा है
ये सच है कातिलों ने अपने खंजर पर अहिंसा लिख लिया है
ये सच है सच का कफ़न अब अखबार ओढ़े हैं
ये सच है इस धरा पर हमने रेखा खींच डाली हैं
ये सच है कि शहर बसते हैं गाँव की इनायत पर
ये सच है गाँव सहमे हैं शहरों की कमायत पर
ये सच है तितलियाँ सहमी नहीं हैं आँधियों से
ये सच है बरगदों की बोनसाई बनाते लोग बौने हैं
ये सच है अपने कुकर्मों के धब्बे हमें अपने लहू से ही धोने हैं
ये सच है ये मिसालें मिल कर मशाल बन जाएँगी कभी
ये सच है मशालें गाँव से चल कर शहर आयेंगी कभी
शहर के लोग सहमे हैं इसी अनुमान से, ---ये सच है .
सभ्यता के इस सफ़र में
केवड़े के फूल और फावड़े की धूल से गुजरते गाँव के इन रास्तों से

पूछ लो कुछ प्रश्न तुम भी
"------ राजीव चतुर्वेदी

No comments:

Post a Comment