Monday, January 16, 2012

"आचरण और व्याकरण की तंग गलियों से गुजरते शब्द की सिसकी सुनी तुमने ?
सुनो ! संवेदना के सेतु से जाता हुआ वह हादसा देखो !!
बताओ लय-प्रलय के द्वंद्व के इस दौर में जो जन्मा है सृजन है क्या ?
फिर न कहना इस उदासी से कभी, ढह चुके विश्वास के टुकड़े उठाये --
दूर तक इस दर्द का विस्तार जिन्दगी के छोर का स्पर्ष करता है 
देख पाओ तो तुम भी देखो जिन्दगी के उस तरफ 
रात के बोझिल पलों में बूढ़े बरगद की टहनी जब खड़कती है तो चिड़िया काँप जाती है 
आचरण और व्याकरण की तंग गलियों से गुजरते शब्द की सिसकी सुनी तुमने ?

सुनो ! संवेदना के सेतु से जाता हुआ वह हादसा देखो !!
" --

" गुनाहगार के गले मैं फूल की माला,
गुरेज हमको नहीं गुजारिश किसकी थी ?
शातिरों के सर पे सेहरा हुकूमत की हिमायत थी 
या सियासत की रवायत थी ---- बता ये आज तू मुझको 
जमहूरियत के चेहरे पे ये श्याह भद्दी सी इबारत किसकी थी ?

हुक्मरानों से फैसले के फासले पे फैले हैं हम 

यह सियासत हम से थी फिर रियासत किसकी थी ? 
Acharya L S
ख्वाब में खोजो कोई उनवान पढो ख्वाब की तासीर पहचानो तो कुछ बात बने जिन्दगी हर ख्वाब की ख्वाहिश ही हुआ करती है ." ----
Acharya L S
ख्वाब में दर्ज हैं ख्वाहिश की इबारत यारो हकीकत जब हाशिये पर हो, हसरतें हांफती हों
Acharya L S
ख्वाब जब आँख में हों तो आंसू बन कर अपने अहसास को अकेले में नमी दिया करते हैं ख्वाब गर हों तेरी आँख में तो सहेजो इनको
Acharya L S
ख्वाब जब रूह से मिलते हैं तो इह्लाम हुआ करते हैं ख्वाब जब देह से मिलते हैं तो इल्जाम हुआ करते हैं
Acharya L S
जिन्दगी दरिया सी बहा करती है तुमने जाजवात के जख्मों को संजोया तो समझलो इतना
Acharya L S
देह वह पुल है जिसके ऊपर तारों से चमकते हैं ख्वाब और इस पुल के नीचे बहुत दूर तलक
Acharya L S
रूह जब जागती और देह सोती हो जहाँ ख्वाब खामोशी से उनवान लिखा करते हैं
»
Acharya L S
"खामोश सी दिखती खला को खंगालो तो कोई ख्वाब दिखे ख्वाब की तासीर पहचानो तो कुछ बात बने

Saturday, January 7, 2012

वर्तमान में भारत को लोकपाल की कम ठोकपाल की अधिक आवश्यकता है !

आप पूछेंगे कैसे ?

उसका जीता जागता सबूत है एक देशभक्त हरविंदर सिंह द्वारा भ्रष्ट शरद पवार पर ठोकपाल (थप्पड़ जड़ देने) लागू कर देने के बाद का हाल !
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Friday, January 6, 2012

जिहादी बेबकूफ सभी जगह मिलते हैं | फ़्रांस की एक अदालत ने नसीम मैमून नामक शख्स को 6 माह के लिए जेल भेज दिया है, क्योंकि नसीम ने एक अस्पताल की नर्स पर इसलिए हमला कर दिया था, क्योंकि उस नर्स ने "डिलीवरी" के दौरान उसकी खातून का बुरका हटा दिया था…। हैरान हो गये न आप? अभी और आगे तो पढ़िये…

जब वह नर्स उसकी गर्भवती पत्नी का चेक-अप कर रही थी, तभी नसीम मैमून ने उसे खातून का बुरका नहीं उठाने बाबत धमकाया था, नहीं मानने पर उसने उस महिला नर्स पर "बलात्कार"(?) का आरोप भी लगा डाला…। जब नसीम को धक्के मारकर ऑपरेशन थियेटर से बाहर कर दिय गया तो उसने छोटी काँच की खिड़की से देखा कि बुरका हटाया गया है, तब वह और उग्र हो उठा तथा उसने दरवाजे को जबरन खुलवाकर महिला नर्स के चेहरे पर प्रहार कर दिया…तब उसे गिरफ़्तार कर लिया गया…। फ़्रांसीसी न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा कि, "धार्मिक मान्यताएं, देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकतीं…"।

कृपया ध्यान दीजिये, कि चेहरे से बुरका नहीं हटाने के लिए "प्रतिबद्ध"(?) यह युवक पढ़े-लिखे-समृद्ध देश फ़्रांस का नागरिक है, सूडान या नाईजीरिया का नहीं…। क्या अब भी बताना पड़ेगा कि "ब्रेन-वॉश" किसे कहते हैं…?

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चुटकी वाली टीप :- जज के उस वाक्य के बाद समूचे यूरोप में फ़्रांसीसी न्यायाधीशों की माँग अचानक बढ़ गई है… :) :) बहरहाल… जिन सेकुलरों और वामपंथियों को अक्सर, मेरी बातें झूठ और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई, प्रतीत होती हैं, उनके लिए लिंक भी पेश है… Good Afternoon... मित्रों… :)
"शंखनादों से सुबह सहमी है
आर्तनादों से शाम
अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?
एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच
शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया
सच की दुनिया अब अखबारों को अखरती है
झूठ का झंडा उठाये दूरदर्शन दौड़ आया

सुना है गिद्ध की नज़रें हमारे गाँव पर हैं
सुना है चहकती चिड़िया आज चिंतित है
सुना है गाय का बच्चा अपनी मां के दूध से वंचित है
सुना है यहाँ कलियाँ सूख जाती हैं नागफनीयाँ सिंचित हैं
सुना है फूल तोड़े जा रहे हैं मुर्दों पे चढाने को
सुना है कांटे तो खुश हैं पर राहें रक्तरंजित हैं
सुना है शब्द सहमे हैं साँसें थम गयी हैं

अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?

एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच


शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया

घर पे आया सबको हंसाया
छत पे जाके अपने आंसू पोंछ आया
आवाज़ देकर फलक से मुझे किसने बुलाया
भूकंप से काँपे घर की देहरी पर दिया किसने जलाया
शंखनादों से सुबह सहमी है

आर्तनादों से शाम


अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?

एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच


शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया

आवाज़ देकर फलक से मुझे किसने बुलाया

भूकंप से काँपे घर की देहरी पर दिया किसने जलाया. "